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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

साठोत्तरी कहानीकारों में कहानीकार ज्ञान रंजन का नाम विशेष प्रकार की कहानियाँ लिखने वाले कहानीकार के रूप में जाना जाता है। संक्षेप में, इनके व्यक्तित्व और कृतित्व का परिचय इस प्रकार हैं-

व्यक्तित्व – समर्थ कथाकार ज्ञान रंजन का जन्म नवम्बर 1936 को महाराष्ट्र के अकोला जिले में हुआ। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया तत्पश्चात् साहित्यिक पत्रिका का 'पहल' का कुशल सम्पादन कर सम्पादक के. रूप में पर्याप्त ख्याति अर्जित की।

कृतित्व - ज्ञान रंजन सातवें दशक के सशक्त कहानीकार हैं। इनका पहला कहानी संग्रह 'फेंस के इधर-उधार' सन् 1968 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद यात्रा, सपना नहीं, क्षणजीवी आदि कई कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए।

कहानी लेखन और सम्पादन के साथ-साथ ज्ञान रंजन ने अनेक विषयों पर लेख भी लिखे जो 'कबाड़खाना' नामक पुस्तक में संकलित हैं।

ज्ञान रंजन की अनेक कहानियों का अंग्रेजी, जर्मन, तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। विभिन्न विश्वविद्यालयों में इनकी रचनाओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। 'अनुभव', 'घंटा', 'बहिर्गमन' तथा 'पिता' इनकी चर्चित कहानियाँ हैं।

कहानी कला तत्त्वों के आधार पर 'पिता' की समीक्षा

'पिता' ज्ञान रंजन जी की एक सामाजिक परिदृश्य को व्यक्त करती यथार्थपरक कहानी है। इसमें लेखक ने भारतीय समाज में व्याप्त पीढ़ी अन्तराल से उत्पन्न साधारण परन्तु जटिल समस्याओं को उकेरा है। ज्ञान रंजन एक पारखी कथाकार है मनो-मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते विचारों को उन्होंने बखूबी पकड़ा है। कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर 'पिता' कहानी की समीक्षा इस प्रकार है-

शीर्षक - प्रस्तुत कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, सरल, आकर्षक, कौतूहलवर्धक और सुन्दर बन पड़ा है। यह शीर्षक कहानी के कथानक का सफल प्रतिनिधित्व करता है। सम्पूर्ण कहानी पिता के इर्द-गिर्द घूमती है। प्रथम पुरुष पात्र 'वह' के माध्यम से पिता के विषय में अवगत कराया गया है। इस. कहानी का शीर्षक सार्थक और उपयुक्त है। कहीं भी अस्वाभविकता लक्षित नहीं है। अतः शीर्षक की दृष्टि से यह कहानी सफल है।

कथावस्तु – प्रस्तुत कहानी की कथावस्तु भारतीय समाज के एक प्रगतिशील परिवार पर आधारित है जिसमें एक पिता अपनी मेहनत और कर्तव्य के चलते अपने परिवार को खुशहाल जीवन देने में तो सफल होता है परन्तु स्वयं सुख-सुविधाओं का उपभोग न करके स्वयं भी कष्ट पाता है और दूसरों को भी कष्ट देता है।

यह कहानी दो पीढ़ियों के मानसिक संघर्ष की कहानी है जो स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। पुरानी पीढ़ी के पिता नयी पीढ़ी के आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान आदि पर टिप्पणी करते हैं तो नयी पीढ़ी भी कुछ समय चुप रहने के पश्चात् अपने तेवर दिखाने लगती है। पिता नयी पीढ़ी के साथ स्वयं में बदलाव नहीं लाना चाहते। अपनी हठधर्मिता के कारण वह अपने ही घर में, अपनी ही जुटाई सुख-सुविधाओं के बीच स्वयं को बाहरी व्यक्ति बना लेते हैं। हर बात में टीका टिप्पणी के चलते घर के अन्य सदस्य उन्हें उनके हाल पर छोड़ देने के लिए बाध्य हो गये हैं। उनके साथ कोई बैठना नहीं चाहता। छोटा बेटा उनके तकलीफ से आहत है पर अपनी प्रतिष्ठा बचाने के भय में वह भी साधिकार बाहर गर्मी में सोने के लिए जद्दोजहद करते पिता को घर के अन्दर लाने में असमर्थ पाता है। महंगे कपड़े, फल, मिठाई फैशन पिता को अखरते हैं। वह अपनी पुरानी धुरी पर चलते हैं। इसी पीढ़ी अन्तराल के कारण उत्पन्न दैननदिन की घटनाओं, समस्याओं को कहानी के माध्यम से उभारा गया है।

कहानी कीं कथावस्तु संक्षिप्त, सजीव, स्वाभाविक सुसंगठित है। यथार्थ को बहुत मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कथावस्तु की दृष्टि से कहानी पूर्ण है।

पात्र और चरित्र-चित्रण - ज्ञान रंजन घटनाओं और वातावरण के आधार पर कथा बुनते हैं इसलिए उनके द्वारा प्रयुक्त पात्र संख्या में कम और वर्ग प्रतिनिधित्व करने वाले होते हैं। इस तत्त्व का निर्वाह भी लेखक बड़ी कुशलता से करता है। पिता पुरानी पीढ़ी का और प्रत्यक्षदर्शी पुत्र नयी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। शेष उल्लिखित पात्र गौण है। ज्ञान रंजन द्वारा प्रयुक्त ये दोनों पिता-पुत्र पात्र समाज के मध्यवर्ग से सम्बद्ध है। पुत्र- पिता के चरित्र को परत-दर-परत उघाड़ने का कार्य करता है। लेखक ने एक पात्र के माध्यम से दूसरे पात्र का चरित्रोद्घाटन बड़ी कुशलता से कराया है। पात्र पिता पुरानी परम्परा से बंध एक हठधर्मी, तर्कशील, कर्त्तव्यनिष्ठ, परिश्रमी, चिंतनशील पिता है जो अपने परिवार के लिए पूरा जीवन संघर्ष करता है लेकिन अपनी हठधर्मिता के कारण परिवार के आदर-सम्मान से वंचित रहता है, जिसका वह अधिकारी है। प्रत्यक्षदर्शी पुत्र, सहज, सरल, स्नेह, सेवा भावी, पुत्र है लेकिन पिता की तर्कशक्ति के समक्ष वह विवश है। इन पात्रों के माध्यम से लेखक भारतीय परिवारों में तेजी से पनपते पीढ़ी अन्तराल की वैचारिक और मनोवैज्ञानिक जटिलताओं को प्रस्तुत करने में सफल हुआ है।

कथोपकथन अथवा संवाद - प्रस्तुत कहानी वर्णनात्मक शैली में लिखी गई है। इसलिए संवादों का प्रयोग कम ही देखने में आता है परन्तु जहाँ भी संवादों का प्रयोग हुआ है वे सरल, स्पष्ट, स्वाभाविक, सजीव, रोचक, पात्र एवं वातावरण अनुकूल बन पड़े हैं तथा कहानी के विकास में सहायक सिद्ध हुए हैं। उदाहरण द्रष्टव्य हैं-

"सुधीर ने कहा, 'कपड़ा कीमती है, चलिए एक अच्छी जगह में आपका नाप दिलवा दूँ। वह ठीक सियेगा, मेरा परिचित भी है।"

वह चिढ़ उठे, "मैं सबको जानता हूँ, वही म्यूनिसिपल मार्केट के छोटे-मोटे दर्जियों से : काम कराते और अपना लेबल लगा लेते हैं। साहब लोग, मैंने कलकत्ते के 'हाल एंडरसन' के सिले कोट पहने हैं। अपने जमाने में, जिनके यहाँ अच्छे-खासे यूरोपियन लोग कपड़े सिलवाते थे। ये फैशन वैशन, जिसके आगे आप लोग चक्कर लगाया करते हैं, उसके आगे पाँव की धूल है। मुझे व्यर्थ पैसा नहीं खर्च करना है।" सुधीर ने कपड़ा छोड़ दिया "जहाँ चाहिए सिलवाइये या भाड़ में झोंक आइये हमें क्या। "

इस प्रकार ये संवाद पिता-पुत्र के वैचारिक स्तर को दर्शाने में सहायक हुए हैं।

भाषा-शैली - प्रस्तुत कहानी की भाषा सरल, स्पष्ट, सजीव और स्वाभाविक है। ज्ञान रंजन की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह सरल स्वाभाविक भाषा में यथार्थ को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। पात्र व वातावरण के अनुकूल भाषा कहानी को नया रूप प्रदान करती है। कहानी की भाषा में अंग्रेजी, उर्दू-फारसी शब्दों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में लेकिन यथास्थान हुआ है।

अंग्रेजी शब्द - पैड स्टल, शावर, बिस्किट, एम्पोरियम, रिलीफ सोसायटी, कॉफी हाउस, वैनिटी, हिप, लेबल, लोकोशेड, इंजिन, संटिंग, क्रांकीट, ग्रैंड ट्रंक आदि।'

उर्दू-फारसी - खलल, फजीहत, दिक्कत, उम्मीद, बेहद, सदरी, बेहतरीन, बमुश्किल, दर्जी, हरकत, लिहाज, इतमीनान आदि। इसके अतिरिक्त देशज शब्दों का प्रयोग भी लेखक ने भरपूर किया है जैसे- डकार, गच, गंजी, डोलता, चुनावा, हड़काना, लपटू, हलकान, भिचाव, औघ आदि। मुहावरों का प्रयोग भी द्रष्टव्य है- बत्ती छाती पर होना, पत्ता भी न डोलना, चिरौरी करना, चुटकी भर में धरा रह जाना, भाड़ में झोंकना, दीवारों को भी पसीना आना, खुद को छुरा भौंकना आदि। पिता की भाषा में व्यंग्यात्मकता के पुट ने कहानी की भाषा को और भी प्रभावशाली बना दिया है। यथा - " आप लोग जाइए न भाई, कॉफी हाउस में बैठिए, झूठी वैनिटी के लिए बेयरा को टिप दीजिए, रहमान के यहाँ डेढ़ रूपये वाला बाल कटाइए, मुझे क्यों घसीटते हैं। "

भाषा की तरह कहानी की शैली भी अत्यन्त सरस, प्रवाहपूर्ण और रोचक हैं। लेखक ने वर्णनात्मक, परिचयात्मक, व्यंग्यात्मक, विश्लेषणात्मक, प्रश्नात्मक आदि शैलियों के माध्यम से अपने भाव - विचारों को पाठकों के अनुकूल बनाया है।

उद्देश्य - कहानी 'पिता' एक सहज-सरल परन्तु उद्देश्यपूर्ण कहानी है। इसमें लेखक ने दो पीढ़ियों के विचार वैभिन्नय को बड़े कौशल के साथ चित्रित किया है। पीढ़ी अन्तराल का प्रभाव भारतीय समाज के अधिकांश परिवारों पर पड़ता है। कहीं पुरानी पीढ़ी की परिवर्तनशीलता से दंशित है तो कहीं नयी पीढ़ी पुरानी पीढ़ी की हठधर्मिता के चलते स्वयं को असहाय अनुभव करती है। ज्ञान रंजन जी ने सामाजिक जीवन की विसंगतियों, विद्रूपताओं और खोखलेपन को सूक्ष्मता से उजागर किया है। कहानी 'पिता' के माध्यम से उन्होंने दो पीढ़ियों के बीच पनपे वैचारिक भिन्नता को कम करने का प्रयास किया है। दोनों पीढ़ियों को परस्पर सामंजस्य की आवश्यकता है न कि हठधर्मिता की। हठ पर चाहे कोई अड़ा रहे पिसता पूरा परिवार है। बाह्यरूप से हँसते-खेलते सुखी होने का नाटक करते परिवार छोटी-छोटी घटनाओं से कितना खोखलापन, अकेलापन, विपरीतता आदि झेलते हैं। उस सबसे बाहर निकालने के उद्देश्य से इस कहानी की संरचना की गई है।

वातावरण- देशकाल - कहानी 'पिता' वातावरण से अनुप्राणित कहानी है। कहानीकार ज्ञान रंजन जी ने वातावरण तत्त्व का बड़ी सुन्दरता और स्वाभाविक रूप से निर्वाह किया है। कहानी में लेखक ने मध्यवर्गीय परिवार के वातावरण और विचारों का यथार्थ चित्रण किया है। साथ ही पात्रों की मन:स्थिति का भी सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है। वातावरण को दर्शाता एक चित्र प्रस्तुत है- "न लोको शेड से उठती इंजनों की शंटिंग, न कांक्रीट की ग्रैंड ट्रंक पर से होकर आती घूमनगंज की ओर इक्के-दुक्के लौटते इक्कों के घोड़ों की टापे, झगड़ते कुत्तों की भोंक-झोंक। बस कहीं उल्लू एक गति, एक वजन और वीभत्सता से बोल रहा है। रात्रि में शहर का आभास कुछ पलों के लिए मर-सा गया है। उसको उम्मीद हुई कि किसी भी समय दूर या पास से कोई आवाज अकस्मात उठ आएगी, घड़ी टनटना जायेगी या किसी दौड़ते हुए ट्रक का तेज लम्बा हार्न बज उठेगा और शहर का मरा हुआ आभासा पुनः जीवित हो जायेगा। " मनःस्थिति को व्यक्त करता चित्र द्रष्टव्य है- " दादा भाई ने अपनी पहली तनख्याह में गुसलखाने में उत्साह के साथ एक खूबसूरत शावर लगवाया लेकिन पिता को अर्से से हम सब आँगन में धोती को लंगोट की तरह बाँधकर तेल चुपड़े बदन पर बाल्टी- बाल्टी पानी डालते देखते आ रहे हैं। खुले में स्नान करेंगे, जनेऊ से छाती और पीठ का मैल काटेंगे। शुरू में दादा भाई ने सोचा, पिता उसके द्वारा शावर लगवाने से बहुत खुश होंगे और उन्हें नई चीज का उत्साह होगा। पिता ने जब उत्साह प्रकट न किया तो दादा भाई मन-ही-मन काफी निराश हो गए।" इस प्रकार अनेक वर्णनों से वातावरण को उभारा गया है। कहानी कला के इस तत्त्व पर कहानी की 'पिता' खरी सिद्ध होती है।

निष्कर्ष - कथाकार ज्ञान रंजन की यह कहानी हिन्दी की एक प्रभावशाली रचना है। इसमें सभी तत्त्वों का बड़े प्रभावशाली ढंग से चित्रण हुआ है। 'पिता' कहानी एक सामाजिक यथार्थवादी कहानी है। कहानी में लेखक ने आज के बदलते परिवेश में पारिवारिक सम्बन्धों, भाव-विचारों को बड़े यथार्थवादी, सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यक्त किया है। वस्तुतः पिता कहानी हिन्दी कहानी साहित्य की अनुपम कृति है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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